
अपनें पात्र को पवित्र कर लो मीरां
के जैसा, ज़हर भी अमृत बन जाए जो हृदय निर्मल हो जाए।
षुद्ध निर्दोश दिल है खुदा का घर भीतर आपके, ये जीवन नूरानीं बन
जाए जो हृदय निर्मल हो जाए।।
प्रेम की बयार बहे नूर की चांदनी में भीतर बाहर, हर मुष्किल आसान
हो जाए जो हृदय निर्मल हो जाए।
अपनें अन्तर तल को स्वछन्द बनाकर रखो सदा साथ अपनें, ईष्वर का
दीदार हो जाए जो हृदय निर्मल हो जाए।।
मौन आत्म ज्ञान पथ, आत्म बोध की राह
बनाए।
मौन सदा सर्वाेत्तम तप, बुद्धि विवेक ज्ञान बढाए।।
मौन सत्य सूक्ष्म तल, चैत्तन्य रूप के बीज उगाए।
मौन सदा साक्षी भाव, आत्म दर्पण में आप दिखाए।।
विशय माया रूप है, आत्मा को कंगाल करें।
विशय अन्धी दौड है, जीवन को बेहाल करे।।
विशय वस्तु विचार से, खुद को चेतन रूप बना।
विशय त्यागकर अन्तर मन से, हृदय में अन्तर ध्यान लगा।।