
मौन ही ज्ञान, मौन ही ज्ञाता
मौन मूल है षांत सहज, वाणी मूल में दोश अनेक।
मौन ब्रह्म भाव से पूर्ण, एक मौन के फल अनेक।।
मौन संतृप्त आत्म भाव भरा, षब्द क्रिया के रूप अनेक।
मौन आत्म आनंद आधार,षब्द वाणी के खेल अनेक।।
स्थूल षब्द जहां पहुंच ना पाए, मौन वहां आनंद बरसाए।
हाथ कोई वहां पहुुंच ना पाए, दिल जहां संगीत बजाए।।
मौन से महके जीवन हर पल, षब्द हर पल बवाल मचाए।
मौन मन का सबसे उत्तम, मन के पार का हर हाल बताए।।
मौन विस्तार को सार में लाए, आत्म चिंत्तन की राह दिखाए।
मौन जीवन का परम मित्र, आत्म ज्ञान की बात बताए।।
मौन आत्म स्वभाव है, मौन रूह के राज ़ बताए।
मौन सर्वाेत्तम भाशा है, परम सुख का एहसास कराए।।
मौन आत्म ज्ञान पथ, आत्म बोध की राह बनाए।
मौन सदा सर्वाेत्तम तप, बुद्धि विवेक ज्ञान बढाए।।
मौन सत्य सूक्ष्म तल, चैत्तन्य रूप के बीज उगाए।
मौन सदा साक्षी भाव, आत्म दर्पण में आप दिखाए।।
मौन ही ज्ञान मौन ही ज्ञाता, मौन ही नूरानी प्रकाष दिखाए।
मौन ही चित्त मौन चैत्तन्य, मौन ही अन्तर ज्ञान कराए।।
मौन ही सुर मौन ही ताल, मौन ही रूह में गीत बजाए।
मौन ही सत्य मौन सनातन,जिसमें नाद नूर आकाष समाए।।
सन्दर्भः- नाद नूर आकाश